लेखनी प्रतियोगिता -18-Mar-2023 अंधेरों से डर
बाहर के उजाले चाहे लाख हों
अंदर के अंधेरों से डर लगता है
शून्यता के जंगल में भटक रहे हैं
कोई रास्ता नजर नहीं आता है
निराशा , विषाद , अमर्ष से घिरे
नकारात्मकता के समंदर में फंसे
जिए जा रहे हैं निरुद्देश्य, नासमझ
अंधेरों में डूबे सहमे डर डर के
जब तक कृष्ण रूपी दीप न जले
तब तक रास्ता न सूझे, कैसे चले ?
अंधेरों से निकलना है तो गीता पढो
प्रभु के चरणों में मन स्थिर करो
एक वही है जो परमात्मा है , दयालु है
सब पर जिसकी असीम कृपा है
वही तो हैं जो प्रकाश पुंज हैं
जब उनकी शरण में हो जायेंगे
तो फिर कैसा डर, किसका डर
अंधेरे उजाले बन जायेंगे
इस भवसागर से तर जायेंगे ।
जीवन का यही सार है
उसकी महिमा अनंत अपार है ।
श्री हरि
18.3.23
Shashank मणि Yadava 'सनम'
19-Mar-2023 09:06 AM
बहुत ही सुंदर और दार्शनिक अभिव्यक्ति
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Varsha_Upadhyay
18-Mar-2023 07:32 PM
शानदार
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डॉ. रामबली मिश्र
18-Mar-2023 09:13 AM
बहुत खूब
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